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Showing posts from May, 2018

गठबंधन बनाम ठगबंधन

गठबंधन बनाम ठगबंधन  पूरा अस्तबल बेचकर विषकन्या कांग्रेस घोड़े बेचके नहीं सो सकती।बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी ?लंका में सब बावन गज के हैं। भूकंप आते ही घोड़े अस्तबल से भाग जाएंगे। एक पखवाड़े के भीतर बहुमत सिद्ध करना है। कल शपथ ग्रहण समारोह के बाद मंत्रिपद का बंटवारा कब तक रोकेंगे। चार उचक्के चालीस चोर सांसदों वाली विषकन्या कोंग्रेस कब चैन की नींद लेगी इसका वर्तमान ठगबंधन में कोई निश्चय नहीं।   आखिर चुनाव पूर्व गठबंधन का तो वर्तमान राज -नीतिक धंधे में प्रावधान है लेकिन ठगबंधन का कोई ज़िक्र नहीं है। यह ठगबंधन पूर्व में नेहरुपंथी अब विषकन्या कही जाने वाली कांग्रेस की मौलिक खोज है।  करतम सो भोगतम। जो बोवोगे वही काटोगे। बोया पेड़ बबूल का तो छाँव कहाँ से पाय ?  

हाथ का पुर्जा -वागीश मेहता

हाथ का पुर्जा -वागीश मेहता                (१ ) गिर गया हाथ से पुर्जा तो , तेरी तक़रीर का क्या होगा। इस देश की संवरे न संवरे , तेरी तकदीर का क्या होगा।  आस्तीन चढ़ा लेने भर से , कोई देश कभी न चला करता।  गर पले सांप आस्तीनों में , फिर हाथ लकीर का क्या होगा।                   (२ ) ये भारत है कोई इंडया  नहीं , नहीं टुकड़ा कोई धरती का।  ये स्वयं धरित्री धारक है , है पुण्य धाम मानवता का।  पंद्रह मिनिट का नाटक कर , कर्नाटक हासिल क्या होगा।  निर्णय फाड़े कागज़ फेंके , अब पहन जनेऊ क्या होगा।                 (३ ) बिन अनुभव की आंच तपे , सिर पर गर ताज़ सजा तो क्या।  जब वाह -वाही भट -भाट करें , फिर किसी की सूझ सलाह ही क्या।  गर भारत भाव नहीं जाना , योरुप इतिहास पढ़ा तो क्या।  संसद को कौन लोग ठप्प कर रहें हैं। सारा देश जानता है। देश की वर्तमान स्थिति से या तो पाकिस्तान सोच के लोग खुश हैं या चंद जेहादी तत्व। इसी भाव को सम्प्रेषित करती रचनाएं इन दिनों भारतधर्मी  समाज के राष्ट्रीय विचारक ,डॉ. वागीश मेहता के मुखारविंद से प्रसूत हो रहीं हैं। उसी कड़ी की यह रच